जहाँ रक़्स करते उजाले मिले वहीं दिल के टूटे शिवाले मिले न पूछो बहारों के रहम-ओ-करम कि फूलों के हाथों में छाले मिले मिरी तीरा-बख़्ती और उन की हँसी सियाही में किरनों के भाले मिले न कुछ मोतियों की कमी थी मगर भँवर से हमें सिर्फ़ हाले मिले मैं वो रौशनी का नगर हूँ जहाँ चराग़ों के चेहरे भी काले मिले दिमाग़ों से उन को मिटाओगे क्या किताबों से जिन के हवाले मिले हमारी वफ़ाएँ ठिठुरती रहें तुम्हें रहमतों के दोशाले मिले थी 'राही' की मंज़िल भी सब से अलग उसे हम-सफ़र भी निराले मिले