जहाँ उन को उन के इशारों को देखा वहीं दिल की साज़िश के मारों को देखा मैं कुछ बे-तुकी बातें बातें सुना दूँ तड़पते हुए आबशारों को देखा सितारे भी सोने लगे वो न आए ख़िलाफ़-ए-तमन्ना सहारों को देखा भँवर के फ़साने सुनाता रहा हूँ न साहिल को देखा न धारों को देखा जहाँ ख़ुद को देखा ख़िज़ाँ ही ख़िज़ाँ है जहाँ उन को देखा बहारों को देखा किया एहतिजाज इस ज़माने ने उस का किसी धुन में जब बे-क़रारों को देखा ये छुप-छुप के यकजा पिएँ 'दौर'-ओ-ज़ाहिद किसी ने भी इन शाहकारों को देखा