ज़ेहन और दिल में फ़ासला ही रहा By Ghazal << उड़ते हुए परिंदों के शह-प... जिस्म पर बाक़ी ये सर है क... >> ज़ेहन और दिल में फ़ासला ही रहा वक़्त ज़ख़्मों से खेलता ही रहा उम्र भर एहतियात के बा वस्फ़ हम पे इल्ज़ाम-ए-कम-निगाही रहा हम जिसे दर्द-आश्ना समझे उम्र भर सूरत-आश्ना ही रहा ख़त-ए-अब्यज़ नज़र का धोका था शब का अंजाम तो सियाही रहा Share on: