ज़ेहन अश्काल को ज़ंजीर नहीं कर पाया मैं मुकम्मल कोई तस्वीर नहीं कर पाया मेरी मिट्टी में गुँधे जौहर-ए-तख़रीब की ख़ैर वक़्त अब तक मुझे ता'मीर नहीं कर पाया जानता हूँ कि मोहब्बत है जहाँगीर मगर मैं मोहब्बत को जहाँगीर नहीं कर पाया वक़्त को मैं ने गुज़ारा है अज़ल से अब तक फिर भी मैं वक़्त की तफ़्सीर नहीं कर पाता ज़िंदगी एक अजब ख़्वाब है 'आकाश' जिसे कोई शर्मिंदा-ए-ताबीर नहीं कर पाया