जहान-ए-हुस्न-ओ-नज़र से किनारा करना है वजूद-ए-शब को मुझे इस्तिआरा करना है मिरे दरीचा-ए-दिल में ठहर न जाए कहीं वो एक ख़्वाब कि जिस को सितारा करना है तमाम शहर अँधेरों में डूब जाएगा हवा को एक ही उस ने इशारा करना है ये क़ुर्बतों के हैं लम्हे इन्हें ग़नीमत जान इन्ही दिनों को तो हम ने पुकारा करना है वो दोस्तों को बताएगा प्यार का क़िस्सा और उस ने ज़िक्र बहुत कम हमारा करना है मिरी निगाह में जचता नहीं कोई 'आसिफ़' विसाल-ए-यार को हासिल दोबारा करना है