जहान-ए-रंग-ओ-बू की दिलकशी बन जाएँ हम दोनों किसी मासूम बच्चे की हँसी बन जाएँ हम दोनों मिटा दें तीरगी को रौशनी बन जाएँ हम दोनों सरासर पूर्णिमा की चाँदनी बन जाएँ हम दोनों कहानी ख़ूबसूरत है मगर बे-रंग है अब तक चलो किरदार इस के मरकज़ी बन जाएँ हम दोनों हमारा ज़िक्र भी आए तो आए अब मिसालों में करें तक़लीद जिन की सब वही बन जाएँ हम दोनों गवाही हो हमारी हर किसी मज़लूम के हक़ में हर इक बेकस के चेहरे की ख़ुशी बन जाएँ हम दोनों बदल दें अपने किरदार-ओ-अमल से हम ज़माने को अब आओ प्यार की पाकीज़गी बन जाएँ हम दोनों ज़मीं की गोद भर दें हम मोहब्बत की फुवारों से सहाब-ए-रहमत-ओ-आसूदगी बन जाएँ हम दोनों क़लम से अपने 'सीमा' हम लिखें मसहूर-कुन ग़ज़लें दिलों के साज़ छेड़ें नग़्मगी बन जाएँ हम दोनों