जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है ये गुलशन रश्क-ए-फ़िरदौस-ए-बरीं है मिरा हुस्न-ए-नज़र हुस्न-आफ़रीं है कि हर ज़र्रा जहाँ का मह-जबीं है तिरी हस्ती से क़ाएम है ये हस्ती ये हस्ती ख़ुद कोई हस्ती नहीं है तिरा दर छोड़ कर जाएँ कहाँ हम कि ये अम्न-ओ-अमाँ की सर-ज़मीं है फ़साद-अंगेज़-ए-आब-ओ-हवा से मिज़ाज-ख़ाक याँ अब आतिशीं है 'हकीम' इस से ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे ये सरकश नफ़स मार-ए-आस्तीं है