ज़हर देता है कोई कोई दवा देता है जो भी मिलता है मिरा दर्द बढ़ा देता है किसी हमदम का सर-ए-शाम ख़याल आ जाना नींद जलती हुई आँखों की उड़ा देता है प्यास इतनी है मेरी रूह की गहराई में अश्क गिरता है तो दामन को जला देता है किस ने माज़ी के दरीचों से पुकारा है मुझे कौन भूली हुई राहों से सदा देता है वक़्त ही दर्द के काँटों पे सुलाये दिल को वक़्त ही दर्द का एहसास मिटा देता है 'नक़्श' रोने से तसल्ली कभी हो जाती थी अब तबस्सुम मिरे होंटों को जला देता है