ज़हर तो ला-जवाब था उस का दिन ही शायद ख़राब था उस का जबकि मेरा सवाल सीधा था फिर भी उल्टा जवाब था उस का वो महज़ धूप का मुसाफ़िर था हम-सफ़र आफ़्ताब था उस का आँख जैसे कोई समुंदर हो और लहजा शराब था उस का मुतमइन था वो ज़ात से अपनी ख़ुद ही वो इंतिख़ाब था उस का