ज़ाहिर में भी क्या क्या पर्दा-दारी है दुनिया-दारी पुरकारी अय्यारी है पाँव तले ख़ुद-दारी और सफ़र आगे रुक नहीं सकते हम कैसी लाचारी है एक मुसलसल दौड़ में शामिल हम भी हैं शौक़ नहीं ये इक ज़ेहनी बीमारी है बाद-ए-मुख़ालिफ़ पूरे ज़ोर से बहती जाए उस जानिब से भी पूरी तय्यारी है माज़ी में तुम जीत गए मुझ से 'बेताब' मुस्तक़बिल की जंग अभी तक जारी है