ज़ाहिर मुसाफ़िरों का हुनर हो नहीं रहा चल भी रहे हैं और सफ़र हो नहीं रहा क्या हश्र है कि बारिश-ए-नैसाँ के बावजूद पैदा किसी सदफ़ में गुहर हो नहीं रहा सुब्ह-ए-विसाल कब से नुमूदार हो चुकी नापैद शाम-ए-हिज्र का डर हो नहीं रहा क़ाइल तमाम शहर तिरे ए'तिबार का होना तो चाहिए था मगर हो नहीं रहा बैठे हुए हैं देर से शातिर बिसात पर मोहरा कोई इधर से उधर हो नहीं रहा लगता है यूँ क़याम है अपना सराए में हम जिस मकान में हैं वो घर हो नहीं रहा मुर्दा हुए हैं लफ़्ज़ कि पत्थर समाअ'तें ख़ामी कहीं तो है कि असर हो नहीं रहा 'गुलज़ार' सब ने पेड़ को सींचा है ख़ून से तक़्सीम हर किसी पे समर हो नहीं रहा