जाह-ओ-हशमत के लिए रुत्बा-ओ-इज़्ज़त के लिए लोग बदनाम हुए जाते हैं शोहरत के लिए अब हमें नंग-ए-जहाँ कहते हैं कहने वाले हम थे मशहूर ज़माने में शराफ़त के लिए फूट सकती हैं कहीं से भी कशिश की किरनें पर्दा-ए-चश्म ही काफ़ी नहीं औरत के लिए टूट कर अपने बिखरने का न होता एहसास तुम न तय्यार हुए होते जो हिजरत के लिए अनगिनत लोगों की गुमनाम ख़ुशी है 'क़ैसर' शाइ'री मैं नहीं करता किसी ख़िलअत के लिए