ज़िल्लत है जो फैलाए बशर पेश-ए-दिगर हाथ यारब न कभी हाथ का हो दस्त-निगर हाथ पंजा करें ख़ुर्शीद से बेदारों की पलकें फ़ुर्क़त की शब आ जाए जो दामान-ए-सहर हाथ हैं साहब-ए-सर-पंजा रईसों को नचाते सर पर जो पड़े चोट तो होता है सिपर हाथ जी में है कहूँ उन से कि हूँ दस्त-गिरफ़्ता वो सुन के ख़जिल हों जो कहें लाओ इधर हाथ क्या दुज़्द-ए-हिना हाथ लगा सीम-बरों को दिल हाथ से ले जाता है चोरी से वो हर हाथ ख़ुर्शीद के पंजे से इशारा है कि आक़िल अल्लाह की जानिब को उठा वक़्त-ए-सहर हाथ