ज़िंदगी दश्त-ए-बला हो जैसे By Ghazal << तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-... ये नज़्ज़ारा न देखा था फ़... >> ज़िंदगी दश्त-ए-बला हो जैसे तुझ को पाने की सज़ा हो जैसे तेरे चेहरे का सिमट कर खिलना मेरी आँखों की दुआ हो जैसे एक दुश्मन सा तिरा तन जाना मज़हर-ए-ख़ू-ए-वफ़ा हो जैसे सब तिरी मदह पे मजबूर हुए हर्फ़-ए-हक़-गोई ख़ता हो जैसे Share on: