ज़िंदगी इश्क़ के मज़हब में बिताना चाहें हम तिरे साथ कभी चाँद पे जाना चाहें हम क़वानीन-ए-मोहब्बत में तुझे ले आएँ हम तिरे नाम का इक मुल्क बसाना चाहें हम ये चाहें कि तिरे हुस्न के पर्दे खोलें हम तिरे ख़्वाब फ़रिश्तों को दिखाना चाहें उस की आँखों में बसर करते रहें उम्र के ख़्वाब उस की साँसों से ही अब साँस बढ़ाना चाहें जानते हैं कि उसे देख के मर जाएँगे फिर भी उस शख़्स से हम आँख मिलाना चाहें वो जो इक जान का दुश्मन है उसी को 'बुशरा' अपनी ये उम्र भी अब उस को लगाना चाहें