ज़िंदगी का है ये भी कोई ढंग न कोई आरज़ू न कोई उमंग होश का तूर या ख़िरद का रंग आशिक़ी के लिए हैं दोनों नंग अक़्ल हैराँ है और फ़िक्र है दंग जल्वा और वो भी सर-ब-सर बे-रंग सुल्ह-ए-कुल इश्क़ का हर इक अंदाज़ हुस्न की हर अदा पयाम-ए-जंग अभी जीते हैं अहरमन-ज़ादे अभी बरपा है ख़ैर-ओ-शर की जंग अल्लाह अल्लाह ये हुस्न का आलम फूल जैसे खिले हों रंगा-रंग क़हक़हे उन के साग़रों की खनक मुस्कुराहट तुलू-ए-सुब्ह का रंग कितनी रंगीन है ग़ज़ल तेरी बंध गया बज़्म में 'जमाली' रंग