ज़िंदगी के सहरा में कुछ निशाँ नहीं मिलते रास्ते तो मिलते हैं कारवाँ नहीं मिलते मामता की छाँव की क़द्र जो नहीं करते धूप उन को मिलती है साएबाँ नहीं मिलते उम्र भर सफ़र ही तो फिर नसीब होता है घर से जब निकल जाएँ आशियाँ नहीं मिलते अपनी अपनी दुनिया में खो गए हैं हम दोनों तुम जहाँ पे मिलते हो हम वहाँ नहीं मिलते दीन हो कि ये दुनिया राएगाँ ही ठहरें हम मुफ़्त में तो ये आख़िर दो-जहाँ नहीं मिलते फ़ैसले के लम्हे में अद्ल करना मुश्किल है चश्म-दीद लोगों के क्यूँ बयाँ नहीं मिलते दर्द की किताबों में हाथ की लकीरों में हम ने पा के देखा है ग़म कहाँ नहीं मिलते