ज़िंदगी के सराब भी देखूँ नींद आए तो ख़्वाब भी देखूँ रात काटूँ किसी ख़राबे में मुँह अंधेरे गुलाब भी देखूँ हर्फ़-ए-ताज़ा वरक़ वरक़ लिक्खूँ सादा दिल की किताब भी देखूँ डूब जाऊँ किसी समुंदर में फिर जज़ीरों के ख़्वाब भी देखूँ ज़िंदगी में हिमाक़तें भी करूँ उस का फिर सद्द-ए-बाब भी देखूँ आज दिल की बयाज़ में लिख कर लफ़्ज़ ख़ाना-ख़राब भी देखूँ प्यास दिल की बुझाऊँ आँखों से रक़्स करते हबाब भी देखूँ