ज़िंदगी किस मक़ाम से गुज़री हसरत-ए-नंग-ओ-नाम से गुज़री ख़ूब आपस में जाम टकराए शाम इस एहतिमाम से गुज़री जाने वो थे कि मेरा हुस्न-ए-ख़याल इक तजल्ली सी बाम से गुज़री कोई रह-रौ न कोई रहबर था जुस्तुजू जिस मक़ाम से गुज़री वादी-ए-मर्ग से गुज़र कर 'नक़्श' रूह सोज़-ए-दवाम से गुज़री