ज़िंदगी क्या है इब्तिला के सिवा शिकवा-ए-दर्द-ए-ला-दवा के सिवा तेरी दुनिया में क्या नहीं मिलता इक दिल-ए-दर्द-आश्ना के सिवा चारा-ए-दर्द-ए-ज़िंदगी क्या है आह-ए-जाँ-काह-ओ-इल्तिजा के सिवा कुछ नहीं इख़्तियार में अपने बंदगी के सिवा दुआ के सिवा मैं ने हर बात उन से कह डाली लेकिन इक हर्फ़-ए-मुद्दआ' के सिवा मेरी इमदाद सब ने फ़रमाई वाइज़-ओ-ज़ाहिद-ओ-ख़ुदा के सिवा कौन समझेगा इन हक़ाएक़ को 'शो'ला'-ए-रिंद-ए-पारसा के सिवा