ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही बहर-ए-वामांदा इक़ामत ही सही दोस्ती वज्ह-ए-अदावत ही सही दुश्मनी बहर-ए-रिफ़ाक़त ही सही तूल देते हो अदावत को क्यूँ मुख़्तसर क़िस्सा-ए-उल्फ़त ही सही रख किसी वज़्अ' से एहसान की ख़ू मुझ को आज़ार से राहत ही सही आप का भी नहीं छुटता दामन मेरे दर पे मिरी शामत ही सही आक़िबत हश्र को आना इक दिन रूठ जाना तिरी आदत ही सही कुछ भी ऐ बख़्त मयस्सर है तुझे या तजस्सुस से फ़राग़त ही सही कूचा-ए-ग़ैर में चल कर रहिए गर नहीं ऐश तो हसरत ही सही यही तक़रीब-ए-सितम हो ऐ काश हर तरह ग़ैर से नफ़रत ही सही अब तो उठ आए लहद से बे-ताब न सही चाल क़यामत ही सही यादगारी की कोई बात तो हो मौत अपनी तिरी रुख़्सत ही सही अदल-ओ-इंसाफ़-ए-क़यामत मालूम आह-ओ-फ़रियाद की फ़ुर्सत ही सही ऐ 'क़लक़' शुक्र-ए-सितम बे-जा क्यूँ आह-ओ-फ़रियाद की फ़ुर्सत ही सही