ज़िंदगी नाम है जिस चीज़ का क्या होती है चलती फिरती ये ज़माने की हवा होती है सैर दुनिया की न कुछ याद-ए-ख़ुदा होती है उम्र इन्हीं झगड़ों में ताराज-ए-फ़ना होती है रूह जब क़ालिब-ए-ख़ाकी से जुदा होती है किस को मालूम कहाँ जाती है क्या होती है फ़िक्र-ए-दुनिया से सिवा हो जिसे उक़्बा का ख़याल वो तबीअत ही ज़माने से जुदा होती है दिल-ए-पुर-ग़म अभी बन जाए दवा-ए-तस्कीन वो नज़र डाल जो मानूस-ए-वफ़ा होती है सादिक़ुल-क़ौल की पहचान यही है ऐ 'नाज़' दिल में डर होता है आँखों में हया होती है