ज़िंदगी सादा वरक़ पर इक हसीं तहरीर है और ये दुनिया उसी तहरीर की तफ़्सीर है हक़-ब-जानिब सिर्फ़ हम हैं दूसरा कोई नहीं ख़ुद-पसंदी की यही अदना सी इक तस्वीर है ये भी अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल और तलव्वुन की दलील जो बहुत प्यारा था अब वो लाएक़-ए-ताज़ीर है राहबर मिलते हैं लेकिन राह दिखलाते नहीं मंज़िलों पर जो पहुँच जाए वही रह-गीर है ज़ूद-रंजी भी 'वासिय्या' एक आदत ही सही ये तो बतला दें कि इस में क्या मिरी तक़्सीर है