ज़िंदगी साथ फ़क़त देगी सहर होने तक कब ये सोचा था कभी मुल्क-बदर होने तक कौन कब रूठ गया किस को कहाँ भूल गए आओ कुछ याद करें ख़त्म सफ़र होने तक चंद आँसू जो तिरा तोहफ़ा है लौटाएँगे हाँ छुपा रक्खे हैं आँखों में गुहर होने तक मुझ को कुछ पौदों का ज़िम्मा जो दिया है यारब याद भी रखना ज़रा उन के शजर होने तक आँधियाँ आएँगी तूफ़ान भी दम तोड़ेंगे हम जिए जाएँगे फूलों से समर होने तक ज़िंदगी मेरे तग़ाफ़ुल से तो नाराज़ न हो तुझ से क्या पूछता मैं अपनी ख़बर होने तक उस से इतना ही ज़रा पूछ ले क्या बीत गया दिल ये कब रुकता है फिर आँख के तर होने तक हम ने चाहत के किसी साज़ पे जो हाथ धरा थम गया दर्द हर इक दर्द-ए-जिगर होने तक ज़िंदगी तुझ से मोहब्बत तो बहुत है लेकिन रूठ जाएँ न कहीं तेरी नज़र होने तक चाह जब आह से गुज़रे तो 'रिशी' बन जाए और फिर जी ले किसी दश्त के घर होने तक