ज़िंदगी उन की चाह में गुज़री मुस्तक़िल दर्द-ओ-आह में गुज़री रहमतों से निबाह में गुज़री उम्र सारी गुनाह में गुज़री हाए वो ज़िंदगी की इक साअ'त जो तिरी बारगाह में गुज़री सब की नज़रों में सर-बुलंद रहे जब तक उन की निगाह में गुज़री मैं वो इक रहरव-ए-मोहब्बत हूँ जिस की मंज़िल भी राह में गुज़री इक ख़ुशी हम ने दिल में चाही थी वो भी ग़म की पनाह में गुज़री ज़िंदगी अपनी ऐ 'शकील' अब तक तल्ख़ी-ए-रस्म-ओ-राह में गुज़री