ज़िंदगी यूँ करें बसर कब तक हम मिलेंगे नहीं मगर कब तक तुम ब-ज़ाहिर जो ला-तअल्लुक़ हो और हम तुम से दरगुज़र कब तक रास्ते रास्ते गुमाँ तेरा और तन्हा करूँ सफ़र कब तक आह निकले न कब तलक आख़िर ख़ून होता रहे जिगर कब तक आओ देखें ये हिज्र का सहरा और करता है दर-ब-दर कब तक एक उम्मीद-ए-वस्ल है लेकिन एक उम्मीद पे गुज़र कब तक