जैसा हमें गुमान था वैसा नहीं रहा क़िस्सा भी इख़्तिताम पे क़िस्सा नहीं रहा इक ख़ौफ़ साथ साथ है ऊँचे मकान का ऐसा नहीं कि शहर में साया नहीं रहा सैलाब अपने साथ बहा ले गया उसे नीला सुबुक-ख़िराम वो दरिया नहीं रहा कश्ती के बादबान में सिमटी रही हवा लुत्फ़-ए-सफ़र कि मैं था अकेला नहीं रहा मिलती है बीच बीच में शहरों की रौशनी सहरा का गश्त खेल-तमाशा नहीं रहा कहते नहीं हो शेर बुज़ुर्गों की तर्ज़ पर तुम को 'सुहैल' ख़ौफ़ ख़ुदा का नहीं रहा