जैसे याद-ए-इम्बिसात-ओ-ग़म शकेबाई के बाद देर तक रोते रहे हम बज़्म-आराई के बाद ऐ सरिश्त-ए-शौक़ अब नापैद हो कर देख ले और क्या होना है इस होने की रुस्वाई के बाद इस क़दर सफ़्फ़ाक कब थी वक़्त की बे-मंज़री कोर-चश्मी से भी बढ़ कर दुख हैं बीनाई के बाद ख़ुद को पा लेने की हसरत में बहुत रुस्वा हुए कुछ सिवा रुस्वाइयाँ हैं अब शनासाई के बाद बे-मसाफ़त इक सफ़र दर-पेश रहना चाहिए सोचते हैं उम्र भर की जादा-पैमाई के बाद कल मैं ख़ुद से सिलसिला-दर-सिलसिला मिलता रहा आलम-ए-तन्हाई जैसे दश्त-ए-तन्हाई के बाद है वही सहरा मगर शादाब कितना हो गया रह-नवर्दान-ए-जुनूँ की आबला-पाई के बाद दिल में अब पहली सी वो गुंजाइशें बाक़ी नहीं पहले इक दालान आ जाना था अँगनाई के बाद