ज़ियाँ ही है ज़ियाँ हम से न पूछो ये ग़ैरों की ज़बाँ हम से न पूछो सुना सकते नहीं हाल-ए-अलम में हमारी दास्ताँ हम से न पूछो हम अपनी ज़ात तक महदूद हैं दोस्त ख़याल-ए-आशिक़ाँ हम से न पूछो रहे हैं ज़िंदगी भर सादगी से ख़ुराफ़ात-ए-जहाँ हम से न पूछो करो महसूस ख़ुद ही बात सच्ची यक़ीं है अब कहाँ हम से न पूछो है कितना तल्ख़ कड़वा नफ़रत-आमेज़ अब अंदाज़-ए-बयाँ हम से न पूछो सजाया है गुलों से बाग़ सारा कमाल-ए-बाग़बाँ हम से न पूछो जिधर देखो इनाद-ओ-बुग़्ज़ की धार है मुल्ला की अज़ाँ हम से न पूछो करो इदराक हर इक गुफ़्तुगू का हैं क्या गुस्ताख़ियाँ हम से न पूछो बुरा मानेंगे कह दी गर हक़ीक़त सुलूक-ए-दोस्ताँ हम से न पूछो रक़ीबों की रक़ाबत क्या बताएँ वो देंगे गालियाँ हम से न पूछो रहे हैं हम भटकते ख़ुद ही 'सहगल' सो मंज़िल का निशाँ हम से न पूछो