जज़्बा ग़ैरत का ख़मीदा नहीं होने देता बोझ इतना है कि सीधा नहीं होने देता शर्त इतनी है गुनहगार पशेमाँ हो जाए वो ख़ता-पोश है रुस्वा नहीं होने देता खोल देता है फिर उम्मीद की खिड़की कोई मुझ को महरूम-ए-तमन्ना नहीं होने देता बुज़दिली कुछ भी अनोखा नहीं करने देती ख़ौफ़-ए-नाकामी करिश्मा नहीं होने देता साँप ने ऐसा जमाया है शजर पर क़ब्ज़ा पंछियों का भी बसेरा नहीं होने देता ज़ेहन-ओ-दिल दोनों में रखता हूँ बना कर 'वासिक़' घर के अंदर कोई झगड़ा नहीं होने देता