जज़्बा-ए-दिल को अमल में कभी लाओ तो सही अपनी मंज़िल की तरफ़ पाँव बढ़ाओ तो सही ज़िंदगी वो जो हरीफ़-ए-ग़म-ए-अय्याम रहे दिल शिकस्ता है तो क्या साज़ उठाओ तो सही जाग उट्ठेगी ये सोई हुई दुनिया लेकिन पहले ख़्वाबीदा तमन्ना को जगाओ तो सही फूल ही फूल हैं कहते हो जिन्हें तुम काँटे मेरी दुनिया-ए-जुनूँ में कभी आओ तो सही तुम्हें आबाद नज़र आएगी उजड़ी दुनिया दिल की दुनिया को मोहब्बत से बसाओ तो सही ज़िंदगी फिर से जवाँ फिर से हसीं हो जाए उन की आँखों से ज़रा आँख मिलाओ तो सही करते फिरते हो अँधेरे की शिकायत 'दर्शन' दिल की दुनिया में कोई दीप जलाओ तो सही