जज़्बा-ए-इश्क़ का इज़हार न होने पाए हुस्न रुस्वा सर-ए-बाज़ार न होने पाए मुद्दतों महफ़िल-ए-साक़ी में रहे हैं लेकिन जाम छूने के गुनहगार न होने पाए बज़्म-ए-अहबाब में आया हूँ मगर डर ये है कोई फ़ित्ना पस-ए-दीवार न होने पाए आओ ता'मीर करें ऐसा मोहब्बत का मकान वक़्त के हाथों जो मिस्मार न होने पाए जिन के सीनों में मोहब्बत की किरन थी 'अंजुम' ख़्वाहिशों में वो गिरफ़्तार न होने पाए