ज़ख़्म अगर गुल है तो फिर उस का समर भी होगा हिज्र की रात में पोशीदा क़मर भी होगा हौसला दाद के क़ाबिल है यक़ीनन उस का उस को मालूम था दरिया में भँवर भी होगा कौन सुनता है यहाँ पस्त-सदाई इतनी तुम अगर चीख़ के बोलो तो असर भी होगा कुछ न कुछ रख़्त-ए-सफ़र पास बचा कर रखना इक सफ़र और पस-ए-ख़त्म-ए-सफ़र भी होगा मुतमइन रहिए यूँही ख़ुद को तसल्ली दीजे यही जीना यही जीने का हुनर भी होगा उम्र गुज़री है इसी एक तमन्ना में 'नदीम' मुझ से बे-घर का कहीं शहर में घर भी होगा