ज़ख़्म दरकार हैं सीने के लिए कुछ न कुछ चाहिए जीने के लिए मै-कदा तेरा सलामत साक़ी आ गए थे यूँही पीने के लिए घुट के रह जाती है आवाज़ की लौ हर नफ़स बोझ है सीने के लिए ज़िंदगी क्या है ये किस को मा'लूम लोग बस जीते हैं जीने के लिए कोई अंदेशा-ए-तूफ़ाँ भी नहीं ग़म ये क्या कम है सफ़ीने के लिए मैं 'ज़िया' हूँ कोई सुक़रात नहीं ज़हर क्यों देते हो पीने के लिए