ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत जब न तब जागह से तुम जाया किए हम तो अपनी ओर से आए बहुत दैर से सू-ए-हरम आया न टुक हम मिज़ाज अपना इधर लाए बहुत फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे पर हमें इन में तुम्हीं भाए बहुत गर बुका इस शोर से शब को है तो रोवेंगे सोने को हम-साए बहुत वो जो निकला सुब्ह जैसे आफ़्ताब रश्क से गुल फूल मुरझाए बहुत 'मीर' से पूछा जो मैं आशिक़ हो तुम हो के कुछ चुपके से शरमाए बहुत