ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम ज़िंदगी का नौहा हम वक़्त का क़सीदा हम जाने तब्अ' के हाथों कौन घाट उतरेंगे शहर से गुरेज़ाँ हम दश्त से रमीदा हम ज़िंदगी की आँखों में रात-दिन खटकते हैं ख़स जो हैं तो ला-सानी ख़ार हैं तो चीदा हम बर्ग बर्ग ताज़ा है ज़ख़्म ज़ख़्म रिसता है मौसम-ए-बहाराँ में शाख़-ए-नौ-बुरीदा हम बज़्म-ए-रंग-ओ-नग़्मा में कौन मुल्तफ़ित होगा आह-ए-ना-कशीदा हम हर्फ़-ए-ना-शनीदा हम