ज़ख़्म सब उस को दिखा कर रक़्स कर एड़ियों तक ख़ूँ बहा कर रक़्स कर जामा-ए-ख़ाकी पे मुश्त-ए-ख़ाक डाल ख़ुद को मिट्टी में मिला कर रक़्स कर इस इबादत की नहीं कोई क़ज़ा सर को सज्दे से उठा कर रक़्स कर दूर हट जा साया-ए-मेहराब से धूप में ख़ुद को जला कर रक़्स कर भूल जा सब कुछ मगर तस्वीर-ए-यार अपने सीने से लगा कर रक़्स कर तोड़ दे सब हल्क़ा-ए-बूद-ओ-नबूद ज़ुल्फ़ के हल्क़े में जा कर रक़्स कर उस की चश्म-ए-मस्त को नज़रों में रख इक ज़रा मस्ती में आ कर रक़्स कर अपने ही पैरों से अपना-आप रौंद अपनी हस्ती को मिटा कर रक़्स कर उस के दरवाज़े पे जा कर दफ़ बजा उस को खिड़की में बुला कर रक़्स कर