ज़ख़्म-ए-दिल भी दिखा के देख लिया बस तुम्हें आज़मा के देख लिया दाग़-ए-दिल से भी रौशनी न मिली ये दिया भी जला के देख लिया शिकवे मिटते हैं क्यूँकर आप से आप सामने उन के जा के देख लिया मुज़्दा ऐ हसरत-ए-दिल-ए-पुर-शौक़ उस ने फिर मुस्कुरा के देख लिया आबरू और भी हुई पानी अश्क-ए-हसरत बहा के देख लिया तर्क-ए-उल्फ़त के सुन लिए इल्ज़ाम राज़-ए-दिल को छुपा के देख लिया जो न देखा था आज तक हम ने दिल की बातों में आ के देख लिया कोई अपना नहीं यहाँ ऐ 'अर्श' सब को अपना बना के देख लिया