ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते दिल किसी का दुखा नहीं सकते वो यहाँ तक जो आ नहीं सकते क्या मुझे भी बुला नहीं सकते वादा भी है तो है क़यामत का जिस को हम आज़मा नहीं सकते आप भी बहर-ए-अश्क हैं गोया आग दिल की बुझा नहीं सकते उन से उम्मीद-ए-वस्ल ऐ तौबा वो तो सूरत दिखा नहीं सकते उन को घूँघट उठाने में क्या उज़्र होश में हम जो आ नहीं सकते माँगते मौत की दुआ लेकिन हाथ दिल से उठा नहीं सकते उन को दावा-ए-यूसुफ़ी 'आसी' ख़्वाब में भी जो आ नहीं सकते