ज़ख़्मों से कहाँ लफ़्ज़ों से मारी गई हूँ मैं जीवन के चाक से यूँ उतारी गई हूँ मैं मुझ को मिरे वजूद में बस तू ही तू मिला ऐसे तिरी महक से सँवारी गई हूँ मैं अफ़्सोस मुझ को उस ने उतारा है गोर में जिस के लिए फ़लक से उतारी गई हूँ मैं मुझ को किया है ख़ाक तो फिर ख़ाक भी उड़ा ऐ इश्क़ तेरी राह में वारी गई हूँ मैं लो आ गई हूँ हिज्र में मरने के वास्ते इतने ख़ुलूस से जो पुकारी गई हूँ मैं मेरी सदाक़तों पे तुम्हें क्यूँ नहीं यक़ीन सौ बार आग से भी गुज़ारी गई हूँ मैं तुम जानते नहीं हो अज़िय्यत के कैफ़ को हिजरत के कर्ब से तो गुज़ारी गई हूँ मैं मैं मिट चुकी हूँ और नुमायाँ हुआ है तू मुर्शिद ख़ुमार में यूँ ख़ुमारी गई हूँ मैं इस वज्द में वजूद कहाँ है मिरा वजूद जाने कहाँ पे सारी की सारी गई हूँ मैं मक़्तल में जान देना थी प्यारों के वास्ते मैं ही थी उन को जान से प्यारी गई हूँ मैं ये क़र्ज़-ए-इश्क़ मैं ने चुकाना था इस लिए 'शाहीन' अपनी जान से वारी गई हूँ मैं