जला के आँखें सियाह शब को खंगालना है इसी अंधेरे से हम को सूरज निकालना है जो बाक़ी चीज़ें हैं वो तो मैं सब सँभाल लूँगा तुम्हें ये करना है सिर्फ़ मुझ को सँभालना है शिकस्त जिस का नसीब होगी कुछ उस का सोचो तुम्हारा क्या है तुम्हें तो सिक्का उछालना है वो संग-दिल है मगर उसे मोम कर रहा हूँ इन्हीं चटानों से मुझ को दरिया निकालना है वही गली जिस की हम कभी ख़ाक छानते थे सितम तो ये है उसी पे अब ख़ाक डालना है