जल्द-अज़-जल्द बिछड़ जाऊँ दुआ दे मुझ को यही बेहतर है तिरे हक़ में भुला दे मुझ को हर कोई सब्र की तल्क़ीन किया करता है कैसे करते हैं कोई ये भी बता दे मुझ को मैं हूँ सदियों से भटकता हुआ प्यासा दरिया ऐ ख़ुदा कुछ तो समुंदर के सिवा दे मुझ को मुझ सा दीवाना नहीं सब को मयस्सर प्यारे अब तिरी मर्ज़ी है चाहे तो गँवा दे मुझ को इस से पहले की ख़ामोशी मुझे पागल कर दे उस से कहियो की ज़रा आ के रुला दे मुझ को इन दिनों दोस्त मिरे सारे ही रूठे हुए हैं मेरे दुश्मन यही मौक़ा है हरा दे मुझ को