ज़ालिम है वो ऐसा कि जफ़ा भी नहीं करता रस्ते से बिछड़ने का गला भी नहीं करता हर जुर्म-ओ-ख़ता से मिरे वाक़िफ़ है वो फिर भी तज्वीज़ मरे नाम सज़ा भी नहीं करता इंसान है वो कोई फ़रिश्ता तो नहीं है हैरत है मगर कोई ख़ता भी नहीं करता हर शख़्स से वो हाथ मिला लेता है रस्मन लेकिन वो कभी दिल से मिला भी नहीं करता वैसे तो बना रहता है वो पुतला वफ़ा का क्या हाल है मेरा वो पता भी नहीं करता इस तौर से उस ने मुझे बर्बाद किया है ऐसे तो ज़माने में ख़ुदा भी नहीं करता 'फ़िरदौस' से मिलना हो तो मयख़ाने में ढूँडो वो शख़्स तो अब घर में रहा भी नहीं करता