जलने में क्या लुत्फ़ है ये तो पूछो तुम परवाने से दीवाना-पन क्या शय है ये राज़ मिले दीवाने से नाव भँवर में आई है अब बचना हुआ मुहाल बहुत जो होना है सो होगा क्या होगा जी बहलाने से गर इस सारी उम्र में एक भी लम्हा नहीं मसर्रत का कैसे सोच लें हो जाएँगे ख़त्म ये दुख मर जाने से अब भी भरा नहीं है तुम्हारा जी तो कर लो और सितम दिल तो बाज़ नहीं आने वाला है ऐसे सताने से कितनी बार कहा लोगों ने 'ख़याल' भला दे ज़ालिम को काश कि पगले लोग ये सोचें भूला है कोई भुलाने से