जल्वा दिखलाती है वहशत गर्दिश-ए-तक़दीर का शो'ला-ए-जव्वाला हल्क़ा है मिरी ज़ंजीर का काम मा'नी से नहीं सूरत-परस्ती के सिवा ख़त-ए-रुख़्सार-ए-बुताँ ख़त है मिरी तक़दीर का इश्क़ में हद ना-तवाँ हूँ मानी-ओ-बहज़ाद से उठ नहीं सकता कभू ख़ाका मिरी तस्वीर का 'फ़ैज़' वस्फ़-ए-मुसहफ़-ए-रुख़्सार में याँ तक हूँ महव है मिरे दीवान पर धोका मुझे तफ़्सीर का