जल्वा जो तिरे रुख़ का एहसास में ढल जाए इस आलम-ए-हस्ती का आलम ही बदल जाए उन मस्त निगाहों का इक दौर जो चल जाए हम दर्द के मारों की तक़दीर बदल जाए मसरूफ़-ए-इबादत का यूँ ख़त्म हो अफ़्साना सर हो तिरी चौखट पे दम मेरा निकल जाए तू लाख बचा दामन दर से न उठूँगा मैं उन में से नहीं हूँ मैं टाले से जो टल जाए ऐ जान-ए-करम मुझ पर एक चश्म-ए-करम कर दे ऐसा न हो दीवाना क़दमों पे मचल जाए हसरत भरी आँखों में इक पल के लिए आ जा देखे जो तेरी सूरत दीवाना बहल जाए तू आग मोहब्बत की भर दे मिरी नस नस में हर ज़र्रा मिरे दिल का इस आग में जल जाए बिजली तिरे जल्वों की गिर जाए कभी मुझ पर ऐ जान मिरी हस्ती इस आग में जल जाए ऐ चारागरो देखो बीमार-ए-मोहब्बत हूँ तदबीर करो ऐसी दिल जिस से बहल जाए तू जज़्ब-ए-मोहब्बत में कर ले वो असर पैदा जिस सम्त नज़र उठ्ठे इक तीर सा चल जाए पामाल-ए-रह-ए-उल्फ़त हो जाऊँ मोहब्बत में वो शोख़ अगर मुझ को क़दमों से मसल जाए तक़दीर करे एहसाँ यूँ बा'द-ए-'फ़ना' मुझ पर ख़ाक-ए-दर-ए-जानाना मुँह पर मिरे मल जाए