जल्वा-ए-गुल का सबब दीदा-ए-तर है कि नहीं मेरी आहों से बहाराँ की सहर है कि नहीं राह-ए-गुम-कर्दा हूँ कुछ उस को ख़बर है कि नहीं उस की पलकों पे सितारों का गुज़र है कि नहीं दिल से मिलती तो है इक राह कहीं से आ कर सोचता हूँ ये तिरी राहगुज़र है कि नहीं तेज़ हो दस्त-ए-सितम दे भी शराब ऐ साक़ी तेग़ गर्दन पे सही जाम सिपर है कि नहीं मैं जो कहता था सो ऐ रहबर-ए-कोताह-ख़िराम तेरी मंज़िल भी मिरी गर्द-ए-सफ़र है कि नहीं अहल-ए-तक़दीर ये है मोजज़ा-ए-दस्त-ए-अमल जो ख़ज़फ़ मैं ने उठाया वो गुहर है कि नहीं देख कलियों का चटकना सर-ए-गुलशन सय्याद सब की और सब से जुदा अपनी डगर है कि नहीं हम रिवायात के मुनकिर नहीं लेकिन 'मजरूह' ज़मज़मा-संज मिरा ख़ून-ए-जिगर है कि नहीं