जल्वा-फ़रोश-ए-ख़ास का अंदाज़-ए-आम देख हर ज़र्रे के वजूद में उस का क़याम देख आएगा पस्त तुझ को नज़र फिर हर आस्ताँ सज्दों में बैठ कर तू हसीं का मक़ाम देख तेरी तलाश में हैं मिरे साथ सरगिराँ मेरी हयात-ओ-मौत का सौदा-ए-ख़ाम देख हो देखना उरूज में शान-ए-ज़वाल अगर ये मेहर-ए-नीम-रोज़ ये माह-ए-तमाम देख 'मख़मूर' अगर समझ में न आए मआल-ए-ज़ीस्त बा'द नुमूद-ए-सुब्ह सियाही-ए-शाम देख