जल्वा-हा-ए-ज़िंदगी को क्या कहें चार दिन की चाँदनी को क्या कहें देखते हैं चेहरा-ए-ख़ाशाक भी फूल तेरी ताज़गी को क्या कहें तिफ़्ल-ए-मकतब की नज़र भी क्या नज़र अक़्ल तेरी रहबरी को क्या कहें आँधियों से देखिए उस का ग़ुरूर ख़ाक-ए-पा की आजिज़ी को क्या कहें दिल ग़म-ओ-अंदोह से ख़ाली तो हो लाला-ओ-गुल की हँसी को क्या कहें कुछ नहीं सब खेल है तक़दीर का वक़्त तेरी बे-रुख़ी को क्या कहें सब से कह देता है 'अहमद' हाल-ए-दिल उस के दिल की सादगी को क्या कहें