जल्वों से मिरे होश उड़ाने में लगे हैं वो फिर मुझे दीवाना बनाने में लगे हैं मर-मर के किए जाते हैं हम याद उन्हें याँ और वो हमें वाँ दिल से भुलाने में लगे हैं वो आए करे कौन पज़ीराई अब उन की अरमाँ तो यहाँ धूम मचाने में लगे हैं फिर दश्त-ए-तलब आज है बेबाकी पे माइल वो दामन-ए-नाज़ अपना छुड़ाने में लगे हैं मैं हूँ कि मिटा जाता हूँ हर बात पे उन की और वो हैं कि दिल मेरा दुखाने में लगे हैं 'साहिर' जिन्हें मैं ने दिया महबूबी का रुत्बा वो नाम-ओ-निशाँ मेरा मिटाने में लगे हैं